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Adidas Company Ka Malik Kaun Hai 2021 में पूरी जानकरी

लेखक: Nishant Singhश्रेणी: कुछ अलगसमय: 2 मिनट

हेल्लो दोस्तों वैसे तो कई प्रकार के जूते, चप्पल की कंपनिया बाजार में आ चुके है लेकिन आज हम एक ऐसे कंपनी के बारे में जानेंगे जो आज पुरे दुनिया में मसहुर है आज के आर्टिकल में हम जानेंगे Adidas कंपनी के बारे में की Adidas Company Ka Malik Kaun Hai और इसकी पूरी कहानी इस पोस्ट में अध्धयन करेंगे।

Adidas Company Ka Malik Kaun Hai

हम जानेंगे की कैसे एक लड़का सड़क पर जूते सिलने वाला मोची का कम करके कैसे एक Adidas कंपनी को अन्तराष्ट्रीय कंपनी बना दिया ये कहानी है अपने सपने को पूरा करने की और एक जिद्द की आप जानते ही होंगे की Adidas एक अच्छा ब्रांड है जिसे सायद पहनते भी होंगे वो आज कंपनी करोडो रूपए कमा रही है जानेंगे इसके बारे में सारी बाते की कैसे Adidas कैसे एक बड़ा ब्रांड बन गया तो चलिए शुरू करते और जानते है की Adidas Company Ka Malik Kaun Hai है।

विषय सूची

  • 1 Adidas Company Ka Malik Kaun Hai पूरी कहानी
  • 2 Adidas कंपनी के बारे में 10 महत्वपूर्ण बाते
      • 2.0.1 हमनें क्या पढ़ा –

Adidas Company Ka Malik Kaun Hai पूरी कहानी

चलिए जानते है की क्या है एडिडास कंपनी की कहानी:-

Adidas कंपनी की स्थापना अडोल्फ़ डेजलर ने की थी अडोल्फ़ डेजलर का जन्म 3 नवम्बर 1990 को जर्मनी के एक छोटे से शहर में हुआ था ये 3 भाई ओए एक बहन में सबसे छोटे थे अडोल्फ़ के पिता का कपड़े का व्यपार था कुछ कारणों की वजह से उनका व्यपार ठप हो गया और उन्होंने कपड़े का काम बंद कर दिया और एक मोची बनाने के लिए जूते सिलाई का काम सीखना शुरू कर दिया इसी आधार पर उनको नजदीक कारखाने में रोजगार भी मिल गया।

कपड़े का काम बंद होने के बाद एडी के पिता ने एक कारखाने में काम करना शुरू कर दिया था और दूसरी ओर एडी की माँ पंलिन ने अपना लौंड्री का काम शुरू किया पंलिन दुसरो के कपड़ो धोती और तीनो भाई धुले हुए कपड़ो को लोगो तक पहुचाया करते थे जिसकी वहज से उनको लौंड्री बायज कहा जाने लगा था पढाई पूरी करने के बाद अडोल्फ़ अपने माता-पिता के कहने पर एक बेकरी के पास जाने लगे।

ताकि वो बेकारी का काम सीख सके लेकिन अडोल्फ़ का मन बेकरी के काम में बिलकुल भी नहीं लगता था उनको खेल बहुत पसंद था वो अपने खाली वक्त में अपने द्वारा बनाये गये खिलौने से खेलते रहते थे।

बेकरी का काम सीख लेना बाद अडोल्फ़ ने बेकरी का काम शुरू करने के बजाए अपने पिता से जूते सिलाई करना सिखा और जूते सिलने लगे अडोल्फ़ की हमेशा यही कोशिश रहती की वो जूते का डिजाईन में ऐसा क्या बदलाव करे जिससे खिलाड़ी को खेलने में काफी आराम मिले 1918 में जब अडोल्फ़ 18 वर्ष के हुए तो उनको आर्मी में भर्ती कर दिया गया।

जब अक्टूबर 1919 में अडोल्फ़ छुट्टियों में घर वापस आये तो उन्होंने देखा की प्रथम विश्व युद्ध के कारण उनकी माँ का लौंड्री का काम बंद पड़ा है ऐसे में अडोल्फ़ ने वापिस जूते बनाने का काम शुरू कर दिया अडोल्फ़ ने कुछ पूंजी लगाकर काम शुरू करना चाहते थे लेकिन युद्ध में लगभग सब ख़त्म हो चूका था उसके पास इतने पैसे नहीं थे की एक अच्छी सिलाई मशीन खरीद सके काम भी करना था और साथ ही घर का खर्च भी चलाना था।

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वो अडोल्फ़ की जिन्दगी का सबसे मुश्किल समय था लेकिन अडोल्फ ने हिम्मत नहीं हरि उन्होंने युद्ध के क्षेत्र में मलबे को तलाशना शुरू किया वह से उनको सैनिको के हैलमेट कुछ खाने के पाउच और पैराशुट के कपड़े आदि मिले उनका प्रयोग अडोल्फ़ ने टूटे हुए चप्पल को ठीक करने में किया जिससे उनका घर खर्चा चलने लगा।

इसके साथ ही उन्होंने जैसे तैसे जूते सिलाई की मशीन का जुगाड़ भी किया और अपना काम शुरू कर दिया यह काम अडोल्फ़ बड़े ही शौख से करते थे अडोल्फ़ हर बार एक ऐसा जूता बनाने की कोशिश करते जो हल्का और मजबूत हो।

जिसे पहनने वाला खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर सके 1923 में अडोल्फ़ के भाई रुडोल्फ भी अपने भाई के साथ काम करने में लग गये 1924 में अडोल्फ़ ने अपने जूते बनाने के कारखाने को “डेजलर ब्रदर्स स्पॉट्स शु फैक्ट्री हर्जोगनौराच” के नाम से रजिस्टर करवा लिया।

1925 तक उन्होंने फुटबाल खेलने और दौड़ में पहने जाने वाले जूते बनाना शुरू कर दिया था इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा अब शुरू होने वाला था एक ऐसा सफ़र जिसने एक लोकल कंपनी को पूरी दुनिया में मसहुर बना दिया।

उस समय जर्मन ओलम्पिक ट्रैक-एंड-फिल्ड टीम के कोच जिसेफ़ वेइटर को जब उनके जूते के बारे में पता चला तो वो खुद अडोल्फ़ से मिलने चले गए जब वह जाकर उन्होंने अडोल्फ़ के जूते का डिजाईन देखा तो उनको वो डिजाईन बहुत पसंद आया और 1936 में होने वाले बालीन ओलंपिक में अडोल्फ़ के हाथ के बने जूते जेस्सी ओवेस को पहनने के लिए दे दिए जेस्सी ओवेस ने ये जूते पहन कर दौड़ और लम्बी खुद में कुल मिलाकर 4 गोल्ड मेडल जीते जिससे उनके जूते को एक नयी पहचान मिल गयी।

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ये पहली बार नहीं हुआ था की जब किसी बड़े खिलाड़ी ने उनके बनाये जूते पहने हो उससे पहले 1928 में ऐमस्टडम ओलंपिक में खिलाडियों ने अडोल्फ़ के द्वारा बनाये गए जूते पहले थे उनके जूते का मसहुर होने का एक कारण ये भी था की दोनों भाई अडोल्फ़ हिटलर की नाजी पाटी में शामिल हो गए थे।

ऐसे तो तीनो भाई ही नाजी पति में शामिल हो चुके थे लेकिन उनमे से रुडोल्फ पूरी तरह से हिटलर के साथ था वही दूसरी तरफ अडोल्फ़ का पूरा ध्यान अपनी कंपनी को आगे बढ़ने में था।

उस समय हिटलर ने एक अभियान शुरू किया जिसका नाम यह यूथ मूवमेंट अडोल्फ़ ने उसका सही फायदा उठाया और इस अभियान में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को अपने जूते देकर अपने ब्रांड को और बड़ा कर दिया एक तरफ जहा उनकी कंपनी को पाचन मिल रही थी।

वही दूसरी और दोनों भाइयो के आपसी मतभेद शुरू हो गए थे इतने ज्यादा बढ़ चुके थे के 1943 में दुसरे विश्व युद्ध के बाद दोनों भाई अलग हो गए।

दुसरे विश्व युद्ध में अमेरिकी फ़ौज से हराने के बाद हिटलर में आत्महत्या कर ली उसके बाद 25 जुलाई 1945 को अमेरिकी सेना ने उन लोगो को पकड़ लिए जिन्होंने हिटलर का साथ दिया था उस लोफो में रुडोल्फ भी शामिल था लगभग एक साल बाद 31 जुलाई 1946 को अमेरिकी सेना ने रुडोल्फ को छोड़ दिया वापिस आने के बबाद रुडोल्फ को लगता था।

की उसके पकडे जाने में उसके भाई अडोल्फ़ का हाथ है रुडोल्फ ने भी अपने भाई अडोल्फ़ को फ़साने की कोशिश की ताकि वो अकेले पुरे कंपनी के मालिक बन सके लेकिन अडोल्फ़ बच गया इतना सब हो जाने के बाद दोनों भाई के आपसी रिश्ते एकदम से खत्म हो गये थे।

दुसरे विश्व युद्ध से पहले अडोल्फ़ की कंपनी लगभग 1,50,000 जोड़ी जूते बेचती थी 1945 में दुसरे युद्ध के बाद हालत फिर से ख़राब हो गए लेकिन अडोल्फ़ ने हिम्मत नहीं हारी और अपना काम जारी रखा अब उनको सबसे बड़ी समस्या कच्चे माल की आ रही थी तो उस से निपटने के लिए अडोल्फ़ ने टैंक में लगी रबर और टेंट में लगी कपड़ो से जुते बनाने का काम जारी रखा।

जैसा की हमने पहले ही बताया की दोनों भाई के बीच मतभेद के कारण दोनों भाई अलग हो गये थे 18 अगस्त 1949 को अडोल्फ़ ने “डेजलर ब्रोदार्स स्पॉट्स शु फैक्ट्री “ का नाम बदलकर “एडिडास (Adidas)” नाम से रजिस्टर करवा लिया।

वही उसके भाई रुडोल्फ ने एक अलग कंपनी बनाई जिसका नाम उन्होंने “रुडा” रखा जिसको कुछ दिन बाद नाम बदलकर “प्यूमा (Puma)” कर दिया गया जिसे आप इन दोनों कंपनी के बारे में जानते ही होंगे।

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दोनों भाइयो के बटवारे ने पुरे शहर का बटवारा कर दिया कुछ लोग अडोल्फ़ के साथ तो कुछ रुडोल्फ के साथ थे शहर के हालत ऐसे हो गये थे की लोग चेहरा देखने से पहले जूतों की तरफ देखते थे ये किस के साथ है जिसकी वहज से उनके शहर को झुकी हुई गर्दनो का शहर कहा जाने लगा था 27 अक्टूबर 1974 को रुडोल्फ का देहांत हो गया।

और लगभग 4 साल बाद 6 दिसम्बर 1978 को अडोल्फ़ का भी मृत्यु हो गया दोनों भाइयो के मौत के बाद दोनों को शमशान के दोनों किनारों पर दफनाया गया ताकि उनकी बीच की दुरी बनी रहे।

Adidas कंपनी के बारे में 10 महत्वपूर्ण बाते

  1. आज Adidas दुनिया में दूसरा और यूरोप में सबसे बड़ा स्पोर्ट्स वियर निर्माता है इस मामले में Nike कंपनी पहले स्थान पर है।
  2. Adidas कंपनी का नाम अडोल्फ़ डेजलर जो की इसके Faundar है उनके नाम पर (Adolf AAssler) के नाम पर पड़ा था।
  3. आज Adidas टेलर मेड (Taylor Made), रोइक्पोर्ट (Rockport) और रीबोक़ (Reebok) इन तीनो कंपनियों को खरीदकर उनके मालिक है।
  4. शुरुआत में Adidas कंपनी के लोगो (Logo) में दो धारी होती थी जब अडोल्फ़ ने अपनी कंपनी को अपने बड़े भाई रुडोल्फ से अलग कर लिया तो उसके बाद तीन धारी वाला नया लोगो अपनाया था।
  5. Adidas का तीन धारी वाला लोगो उनका खुद का नहीं था यह लोगो उनोने कर्हू (Karhu) नाम की कंपनी से 1952 में 1600 यूरो और दो विस्की की बोतल देकर ख़रीदा था कर्हू (Karhu) फ़िनलैंड का एक स्पोर्ट्स ब्रांड है।
  6. Adidas का कपड़ो का पहला उत्पाद “फ्रांज बेकेंनबायर टैंक सूट” था जिसे 1967 में बनाया गया था इससे पहले ये कंपनी सिर्फ जूते बनाया करती थी।
  7. अगस्त 2005 में Adidas ने अपने ब्रिटिश प्रतिद्वंदी रिबोक (Reebok) को 3.8 बिलियन डॉलर में खरीदने की इच्छा जताई और जनवरी 2006 में इसे खरीद लिया।
  8. अडोल्फ़ के नाम स्पोर्ट्स शूज व अन्य स्पोर्ट्स उपकरणों के 700 के अधिक पेटेंट है जब उनका मृत्यु हुआ तो उस समय उसके पास 17 फक्ट्रीयां थी जिनसे हर साल 1 अरब की बिक्री होती थी।
  9. 1960 के ओलम्पिक में प्यूमा ने 100 मीटर स्प्रिट फ़ाइनल में हिस्सा लेने वाले जर्मन धावक हैरी को प्यूमा के जूते पहनने के लिए पैसा दिए इससे पहले हैरी ने एडिडास के जूते पहने थे और अडोल्फ़ को पैसे देने के लिए कहा था लेकिन उन्होंने माना कर दिया।
  10. Adidas ने 2008 में बीजिंग में हुए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के प्रयोजन में 70 मिलियन यूरो खर्च किये थे।
  • ये थी Adidas कंपनी के बारे में कुछ रोचक बाते ऐसे ही जानकारी के लिए हमारे साईट हिंदी सीखो पर बने रहे।

हमनें क्या पढ़ा –

इस आर्टिकल में हमने पढ़ा Adidas Company Ka Malik Kaun Hai और इसकी पूरी कहानी बहुत से आसान शब्दों में बताया गया है ताकि आपको अच्छी तरह समझ में आ सके।

दोस्तो कैसा लगा ये पोस्ट Comment Box में जरूर बताएं ओर आपका कोई सवाल है तो Comment Box में पूछ सकते है।

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HindiSikho.IN में आपका स्वागत है मैं निशांत सिंह (Nk Babu) इस ब्लॉग का को-फाउंडर हूं अगर मैं अपनी शिक्षा के बारे में बात करूं तो मैं BCA का छात्र हूं और मुझे दुसरो को अच्छी-अच्छी जानकरी देने में बहुत अच्छा लगता है आपसे अनुरोध है इस वेबसाइट पर विजिट करते रहिये हम आपके लिए अच्छी-अच्छी जानकारी लाते रहेंगे।

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